धुंधले अतीत में भी खुशकिस्मत कल का पैगाम होता है सफ़र चाहे कितना भी कंटीला हो, पर खूबसूरत अंजाम होता है लाख अंधेरे हो अतीत की रातों में, हर दिन की छठा में खुशियों का रोशनदान होता है फिज़ाओं की ताजगी अब पुराने ज़ख्मों पर मरहम लगा रही है मुबारकबाद देती ये घड़ी हौले से गुनगुना रही है पिघलती किरणें भी मंद मुसकुरा रही है तुझे तेरे होने का अहसास करा रही है ये संभव है की अतीत कुछ खास न रहा हो धूमिल होती शाम में रोशनी का कोई आस हो पर याद रख तू ए मुसाफ़िर, रेगिस्तान भी अकसर सुनसान नहीं होता पहल तो तुझे ही करनी है, यूं ही खुदा किसी पर मेहरबान नहीं होता कल से कल में जीते-जीते आज को भूल चुका है तू तेरे इंतज़ार में बैठीं खुशियों की आवाज को भूल चुका है तू बस इक पल के लिए ख़ुद के अंतरमन में तू झाँक ज़रा क्या है तेरी खुशियों के पैमाने, तू आंक ज़रा फिर आवाज देना अपनी मुसकराहट को मन से किसी के मन से ऊँचा कोई आसमान नहीं होता हर मंजिल तेरे कदम चूमेगी, बस ख़ुद पर भरोसा रखना सीख ले हर सूखे नब्ज को तू अपने हौसलों से सींच ले तू पहल तो कर ज़रा उड़ने की, ये खुला आसमान तेरा है ज़रा सा बगावत तू
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आखिर क्यों?
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अब इन सांसों में क्यों तूफ़ान का शोर है इस धड़कते दिल पर न जाने किसका जोर है शुष्क हवाओं में किसकी शीतलता छाई है ज़िन्दगी अब मुझे किस मोर पर ले आई है अब हर नई धूप का अहसास है कुछ ऐसा पिघलते नीलम के दरिया के जैसा किसी की आहट पर क्यों मन शोर मचाता है इक अजनबी की बातों में क्यों इसे रास आता है जिससे मिले चंद लम्हे ही गुज़रे है, क्यों उसके आने का इंतजार है क्यों ये लगता है कि इन घटाओ को अब इक मचलते सावन का इंतजार है जो नज़ारे कल तक न भाते थे, आज उनमें क्या खूबसूरती छाई है हर ओर तो पसरा सन्नाटा है, फिर मेरी ज़बान पर किसी धुन ठहर आई है इससे पहले ऐसा मंज़र न कभी आया था इक खूबसूरत बेचैनी का सिलसिला न कभी दिल पर छाया था नज़ारे अब भी वही है, बस ये नज़र है किसी और की बहारें अब भी वही है, बस इनमें रौनक सी है बेजोड़ की अब हर शोर में भी संगीत का अक्स दिखता है घनघोर निशा में भी टिमटिमाता इक छोर दिखता है पहली बार ये अहसास आया की बिना अल्फाजों के कैसा लगता है कहना है तो बहुत कुछ पर ये मन हर बार बेवजह ही झिझकता है
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं
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टिमटिमाती उम्मीदों का काफ़िला मुबारक हो दस्तक देती खुशियों का स्वागत हो ख़ुद के मन को कुछ ऐसे जगमगाओ, हर जन जैसे इक दीये की अमानत हो अमावस में रोशनी की इबादत हो घनघोर निशा में भी जगमगाने की चाहत हो हर रात अब रोशनी की विरासत हो आपके चेहरे पर हमेशा मुसकराहट हो न रात किसी की अंधेरे में गुज़र जाए, इस फिक्र का हर दिल में स्वागत हो हर दीपक का खुले दिल से स्वागत हो हर मन में अब रोशनी की आहट हो दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं
किस दर दुआ से दीदार करूँ मैं
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Picture courtesy of Maltz Evans किस दर दुआ से दीदार करूँ मैं, हर दरवाजे पर दोजख का पैगाम लिखा है। जिन्दगी में लगी आग की दास्तां किसे सुनाऊं, आज सागर में भी धुआँ का इक कोहराम दिखा है। कत्ल आम की दास्ताँ का आलम हमसे न पूछो यारों, इनसानियत पर भी तो ये इल्जाम लगा है। इनसाफ़ भी तो खुद से इस कदर जुदा हुआ, मुझ पर ही मेरे कत्ल का इल्जाम लग गया। इनसानियत की कब्र पर दावत की शाम है। इस शाम में बटी हैवानियत की जाम है। मासूमों के लाश पर बनते है आज महल यहाँ। खुदा की खुदाई पर भी इल्जाम लगा है।
कुछ पाने की खुशी है, कुछ खोने का गम है
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कुछ पाने की खुशी है , कुछ खोने का गम है। Picture courtesy of Pradeep Kumbhashi कुछ पाने की खुशी है , कुछ खोने का गम है। मुसकराहट है होंठों पर , आँखें फिर भी नम है। खुशी है कि जो मैंने देखा था सपना , कदम बढ़ चला है उसी ओर अपना। गम है कि छूटी वो भँवरों की टोली। वो मस्ती , ठिठोली वो खुशियों की होली , बिछड़ सी गई यारों की अपनी टोली। सफर में नए राह मिल तो गए हैं , पर पथ पुराने पराए हुए हैं। आगे मंजिल मुसकुराता खरा है , पीछे राह उदास परे हैं। माना सच होगा सपना वो अपना , जिसके कभी ताने - बाने बुने थे । वो मंजिल मिलेगी जिसकी खुशी है , पर राह जो छूटे उसका तो गम है। बाहर जिंदगी में खुशियों का मौसम है , पर मन में कहीं पर तो वो मातम है। वो बचपन जो छुटा सदा के लिए है। वो मस्ती जो खोई सदा के लिए है। वो यारी जो छूटी सदा के लिए है। धरती उदास , गमगीन अंबर है। पसरी खामोशी की इक चादर है। मन है उदास , खामोश जीवन है , खामोश ज़बान , खामोश कलम है।
जब रोशन हो जहाँ
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Picture courtesy of Shan Sheehan जब रोशन हो जहाँ , तो हजारों परवाने मिल जाते है। छोटी-छोटी बातों के फसाने बन जाते है। पर जब दौर अंधेरे का आता है , खुद का साया भी साथ छोर जाता है। हर चीख अनसुनी सी रह जाती है , जब तकदीर की कमी रह जाती है। जब राहें रोशन हो तो मुसाफिर हजा रों मिलेंगे , खरोंच भी लग जाए तो सहारे हजारों मिलेंगे। पर वीरान राहों पर ऐसी तकदीर नहीं होती , जख्म हजारों हैं , पर उनकी कोई तस्वीर नहीं होती। Picture courtesy of peter jackson जिन्दगी का ये कैसा दोहरा स्वरूप है ? आबाद जंगलों को हरियाली मिलती बेहिसाब है । पर हर रेगिस्तान का निर्जन बन जाता ख्वाब है। जिन्दगी के खेल भी अजीब हैं । जहाँ जीवन है , वहाँ दुनिया नहीं। जहाँ दुनिया है , वहाँ जीवन नहीं। kumar vishwas at his best awesome poetry at BIT Video taken from YouTube channel Crazy Harsh
झूठी परछाई
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Art by Abhishek Kumar उत्थान अहम का जब होता है, अहंकार सिर पर होता है, भ्रमित नयन उपहास है करती, पतन से परिचय तब होता है। हम सभी अपने जीवन में ऊँचाइयों की तलाश में इतने खोए होते है कि हमें खुद पता नहीं चलता कि हमारे पाव जमीन से कब जुदा हो जाते है। हमें खुद पता नहीं होता है कि बुलंदियों को छुने के चक्कर में हम वास्तविकता से कितने दूर हो जाते हैं। शायद एसी ही परिस्थिति में आत्मविश्वास अहंकार को परिभाषित करने लगता है। हम अपने वजूद की वास्तविकता खो कर इक ऐसी परिकल्पना में लीन हो जाते है जिसका यथार्थ से कोई लेना-देना नहीं होता है। जिन्दगी की तरलता पर जब हम खुद के बजाए अपने घमंड के प्रतिबिम्ब की प्रखरता से परिचित होते है तब यथार्थ की रोशनी फरेबी चकाचौंध के बीच कही गुम सी हो जाती है। ये साहित्य की कोई कोरी कल्पना नहीं बल्कि जीवन की वास्तविकता है। हम सभी अपने जीवन के किसी-न-किसी हिस्से में इस यथार्थ से रूबरू हो चुके है। बावजूद इसके हम इस सच को नजरंदाज कर देते है। हम खुद को अपने जीवन की कहानी का रंगा सियार बना लेते है जिसके नकली रंगत उतरने के बाद की दुर्द