किस दर दुआ से दीदार करूँ मैं
Picture courtesy of Maltz Evans |
किस दर दुआ से दीदार करूँ मैं,
हर दरवाजे पर दोजख का पैगाम लिखा है।
जिन्दगी में लगी आग की दास्तां किसे सुनाऊं,
आज सागर में भी धुआँ का इक कोहराम दिखा है।
कत्ल आम की दास्ताँ का आलम हमसे न पूछो यारों,
इनसानियत पर भी तो ये इल्जाम लगा है।
इनसाफ़ भी तो खुद से इस कदर जुदा हुआ,
मुझ पर ही मेरे कत्ल का इल्जाम लग गया।
इनसानियत की कब्र पर दावत की शाम है।
इस शाम में बटी हैवानियत की जाम है।
मासूमों के लाश पर बनते है आज महल यहाँ।
खुदा की खुदाई पर भी इल्जाम लगा है।
Comments
Post a Comment