झूठी परछाई

उत्थान अहम का जब होता है,
अहंकार सिर पर होता है,
भ्रमित नयन उपहास है करती,
पतन से परिचय तब होता है।





हम सभी अपने जीवन में ऊँचाइयों की तलाश में इतने खोए होते है कि हमें खुद पता नहीं चलता कि हमारे पाव जमीन से कब जुदा हो जाते है। हमें खुद पता नहीं होता है कि बुलंदियों को छुने के चक्कर
में हम वास्तविकता से कितने दूर हो जाते हैं। शायद एसी ही परिस्थिति में आत्मविश्वास अहंकार को परिभाषित करने लगता है। हम अपने वजूद की वास्तविकता खो कर इक ऐसी परिकल्पना में लीन हो जाते है जिसका यथार्थ से कोई लेना-देना नहीं होता है। जिन्दगी की तरलता पर जब हम खुद के बजाए अपने घमंड के प्रतिबिम्ब  की प्रखरता से परिचित होते है तब यथार्थ की रोशनी फरेबी चकाचौंध के बीच कही गुम सी हो जाती है।

ये साहित्य की कोई कोरी कल्पना नहीं बल्कि जीवन की वास्तविकता है। हम सभी अपने जीवन के किसी-न-किसी हिस्से में इस यथार्थ से रूबरू हो चुके है। बावजूद इसके हम इस सच को नजरंदाज कर देते है। हम खुद को अपने जीवन की कहानी का रंगा सियार बना लेते है जिसके नकली रंगत उतरने के बाद की दुर्दशा से हम भली-भाँति परिचित है।

जिन्दगी के हर मो पर हमें सही रास्तों का चुनाव करना होता है। हम या तो अपने खामियों की पूर्ति कर खुद को बेहतर बना सकते है या फिर अपनी खामियों को ढकने के लिए इक मुखौटा लगा कर दुनिया को छलावा दे सकते है। इनमें से एक मार्ग बुलंदियों की और जाता है तो दुसरा विध्वंस की प्रलयकारी प्रवृति से रूबरू कराता है। हमारे इन्हीं फैसलों से हमारे आगे की दिशा और दशा सुनिश्चित होती है।

भले ही झूठ व फरेब की राह आसान लगे पर हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि ये राह हमें किस और ले जा रहे हैं। ऐसे मार्ग मृग तृष्णा के समान होते हैं जो हमारे उद्देश्यहीन कारण बनते हैं। वही दूसरी और सच्चाई का रास्ता भले ही उतार-चढ़ाव से भरपूर हो परंतु उसपर जीत तय है।

ये हमें तय करना है कि हम खुद को किस मुकाम पर देखना चाहते हैं। हमें यदि अपने जीवन में सफलता के शिखर पर पहुँचना है तो हमें यह हमेशा याद रखना होगा कि खुद को किसी और के जैसा बनाकर हम कुछ नहीं हासिल करने वाले हैं। सही मायनों में हम सफलता के शिखर पर पहुँचना चाहते हैं तो हमें खुद को स्वीकारना होगा। तभी जाकर हमारे अंदर से आत्मविश्वास का उदय होगा और हमारे हर कदम की आहट यह कहेगी-

हारा जो कल था बीता वो पल था,
दिन नया लाया है इक नई सौगात,
करना बस मुझे इस पल का आगाज।
तूफान में उजड़े थे जो आशियाने,
डुबी थी सपनों की जिनकी मकाने,
लौटेगा हर पल होगी वो हलचल,
जो करने चला हूँ मैं अब इस पल का आगाज।


Javed Akhtar mesmerises audience with his shayri

Video taken from YouTube channel Pardesh18 English 

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