कुछ पाने की खुशी है, कुछ खोने का गम है
कुछ पाने की खुशी है, कुछ खोने का गम है।
Picture courtesy of Pradeep Kumbhashi |
कुछ पाने की खुशी है, कुछ खोने का गम है।
मुसकराहट है होंठों पर, आँखें फिर भी नम है।
खुशी है कि जो मैंने देखा
था सपना,
कदम बढ़ चला है उसी ओर
अपना।
गम है कि छूटी वो भँवरों
की टोली।
वो मस्ती, ठिठोली वो खुशियों की
होली,
बिछड़ सी गई यारों की
अपनी टोली।
सफर में नए राह मिल तो गए
हैं,
पर पथ पुराने पराए हुए हैं।
आगे मंजिल मुसकुराता खरा
है,
पीछे राह उदास परे हैं।
माना सच होगा सपना वो
अपना,
जिसके कभी ताने-बाने बुने थे।
वो मंजिल मिलेगी जिसकी
खुशी है,
पर राह जो छूटे उसका तो
गम है।
बाहर जिंदगी में खुशियों
का मौसम है,
पर मन में कहीं पर तो वो
मातम है।
वो बचपन जो छुटा सदा के
लिए है।
वो मस्ती जो खोई सदा के
लिए है।
वो यारी जो छूटी सदा के
लिए है।
धरती उदास, गमगीन अंबर है।
पसरी खामोशी की इक चादर
है।
मन है उदास, खामोश जीवन है,
खामोश ज़बान, खामोश कलम है।
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