धुंधले अतीत में भी खुशकिस्मत कल का पैगाम होता है सफ़र चाहे कितना भी कंटीला हो, पर खूबसूरत अंजाम होता है लाख अंधेरे हो अतीत की रातों में, हर दिन की छठा में खुशियों का रोशनदान होता है फिज़ाओं की ताजगी अब पुराने ज़ख्मों पर मरहम लगा रही है मुबारकबाद देती ये घड़ी हौले से गुनगुना रही है पिघलती किरणें भी मंद मुसकुरा रही है तुझे तेरे होने का अहसास करा रही है ये संभव है की अतीत कुछ खास न रहा हो धूमिल होती शाम में रोशनी का कोई आस हो पर याद रख तू ए मुसाफ़िर, रेगिस्तान भी अकसर सुनसान नहीं होता पहल तो तुझे ही करनी है, यूं ही खुदा किसी पर मेहरबान नहीं होता कल से कल में जीते-जीते आज को भूल चुका है तू तेरे इंतज़ार में बैठीं खुशियों की आवाज को भूल चुका है तू बस इक पल के लिए ख़ुद के अंतरमन में तू झाँक ज़रा क्या है तेरी खुशियों के पैमाने, तू आंक ज़रा फिर आवाज देना अपनी मुसकराहट को मन से किसी के मन से ऊँचा कोई आसमान नहीं होता हर मंजिल तेरे कदम चूमेगी, बस ख़ुद पर भरोसा रखना सीख ले हर सूखे नब्ज को तू अपने हौसलों से सींच ले तू पहल तो कर ज़रा उड़ने की, ये खुला आसमान तेरा है ज़रा सा बगावत...
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