आखिर क्यों?
          अब इन सांसों में क्यों तूफ़ान का शोर है   इस धड़कते दिल पर न जाने किसका जोर है   शुष्क हवाओं में किसकी शीतलता छाई है   ज़िन्दगी अब मुझे किस मोर पर ले आई है       अब हर नई धूप का अहसास है कुछ ऐसा   पिघलते नीलम के दरिया के जैसा   किसी की आहट पर क्यों मन शोर मचाता है   इक अजनबी की बातों में क्यों इसे रास आता है         जिससे मिले चंद लम्हे ही गुज़रे है, क्यों उसके आने का इंतजार है   क्यों ये लगता है कि इन घटाओ को अब इक मचलते सावन का इंतजार है   जो नज़ारे कल तक न भाते थे, आज उनमें क्या खूबसूरती छाई है   हर ओर तो पसरा सन्नाटा है, फिर मेरी ज़बान पर किसी धुन ठहर आई है         इससे पहले ऐसा मंज़र न कभी आया था   इक खूबसूरत बेचैनी का सिलसिला न कभी दिल पर छाया था   नज़ारे अब भी वही है, बस ये नज़र है किसी और की     बहारें अब भी वही है, बस इनमें रौनक सी है बेजोड़ की       अब हर शोर में भी संगीत का अक्स दिखता है   घनघोर निशा में भी टिमटिमाता इक छोर दिखता है   पहली बार ये अहसास आया की बिना अल्फाजों के कैसा लगता है     कहना है तो बहुत कुछ पर ये मन हर बार बेवजह ही झिझकता है                 ...